हरियाली के नाम पर हेरा-फेरी! उत्तराखंड वन विभाग की ‘मियावाकी माया’ पर विपक्ष का बड़ा हमला

देहरादून 19 जून उत्तराखंड के वन विभाग की ‘हरियाली’ इन दिनों खुद सवालों के घेरे में है! नेता प्रतिपक्ष श्री यशपाल आर्य ने वन विभाग पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि जिस प्रदेश को ‘हरित प्रदेश’ कहा जाता है, वहां पौधारोपण भी अब भ्रष्टाचार की जद में आ गया है।
झाझरा में मियावाकी या मुनाफाखोरी?
देहरादून के झाझरा क्षेत्र में मियावाकी पद्धति से पौधारोपण के लिए विभाग ने 52.40 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रस्ताव बनाया है। जबकि इसी तकनीक से साल 2020 में कालसी में लगाए गए पौधों पर महज 11.86 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर खर्च हुए थे।
आर्य ने सवाल दागा – “वही तकनीक, वही विभाग, लेकिन खर्च 10 गुना ज्यादा? आखिर क्यों?”
पौधों की कीमत में ‘हरियाली’ या ‘हेराफेरी’?
18333 पौधों के लिए 100 रुपये प्रति पौधा की दर से 18.33 लाख रुपये का प्रस्ताव है, जबकि कालसी में वही पौधे 10 रुपये प्रति पौधा में लगे थे। यानी सिर्फ पौधों की लागत में ही 900% का फर्क!
मसूरी प्रोजेक्ट में भी गड़बड़झाला!
मसूरी वन प्रभाग ने भी 6 हेक्टेयर ज़मीन पर पौधारोपण का ₹4.26 करोड़ का भारी-भरकम प्रस्ताव भेजा है, जबकि तय मानकों के अनुसार यह खर्च महज 84 लाख रुपये में पूरा हो सकता था। हैरानी की बात यह है कि प्रस्ताव में स्थानीय प्रजातियों का नाम तक नहीं दिया गया – जो मियावाकी पद्धति की बुनियादी शर्त है!
जब नर्सरी खुद की है, तो बाहर से पौधे क्यों?
आर्य ने तंज कसते हुए पूछा – “जब विभाग के पास खुद की टेक्नीकल नर्सरी मौजूद हैं, तो फिर महंगे पौधे बाहर से क्यों मंगवाए जा रहे हैं? क्या यह कमीशन का खेल है?”
सीएजी रिपोर्ट भी कर चुकी है पर्दाफाश
आर्य ने याद दिलाया कि पहले भी विधानसभा में पेश CAG रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि वन संरक्षण फंड से आईफोन, लैपटॉप और फ्रिज जैसे गैर-जरूरी खर्चों पर करोड़ों रुपये उड़ाए गए।
भ्रष्टाचार की बू, जवाबदेही गायब!
आर्य ने कहा कि यह मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि गहरे भ्रष्टाचार का संकेत देता है।
“पौधारोपण जैसे पर्यावरणीय कार्यों को भी नहीं छोड़ा गया। जवाबदेही और पारदर्शिता के नाम पर वन विभाग पूरी तरह फेल नजर आ रहा है।”

