दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में यूओयू ने किया उल्लेखनीय कार्य : सुबोध उनियाल

विश्वविद्यालय के 20वें स्थापना दिवस पर हुआ भव्य आयोजन, दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी व पुस्तक मेला सम्पन्न
हल्द्वानी । 31 अक्टूबर उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (यूओयू) के 20वें स्थापना दिवस पर आयोजित भव्य समारोह में प्रदेश के भाषा, वन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने दूरस्थ एवं मुक्त शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर नई पहचान बनाई है। उन्होंने कहा कि यूओयू द्वारा अपना रेडियो एप तैयार कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया गया है, जो शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक के समुचित प्रयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में काबीना मंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय ने 20 वर्षों की अपनी यात्रा में उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्होंने आशा जताई कि आने वाले वर्षों में यह प्रगति और गति पकड़ेगी। उन्होंने कहा कि “मानव मस्तिष्क का उचित उपयोग कर कोई भी व्यक्ति अद्भुत परिणाम दे सकता है, हमें भी इसी दिशा में कार्य करना चाहिए।”
भाषा और साहित्य पर चर्चा करते हुए श्री उनियाल ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है, और साहित्यकारों का सम्मान कर राज्य सरकार ने इस दिशा में विशेष पहल की है।
कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक डा. मोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि आज दूरस्थ शिक्षा राज्य के सुदूर क्षेत्रों तक पहुंच चुकी है, और इसमें यूओयू की भूमिका सराहनीय रही है। उन्होंने विश्वविद्यालय परिवार को 20 वर्षों की सफलता पर बधाई दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने बताया कि विश्वविद्यालय आगामी सत्र से होमस्टे आधारित रोजगारपरक पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहा है। साथ ही कौशल विकास के नए कोर्स भी प्रारंभ होंगे, जिससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित होंगे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रम भी लाने जा रहा है — जो उत्तराखण्ड का पहला विश्वविद्यालय होगा जो इस दिशा में पहल करेगा।

यूकॉस्ट देहरादून के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने कहा कि अब समय आ गया है कि शिक्षा को एआई तकनीक से जोड़ा जाए ताकि पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता बढ़ाई जा सके। प्रो. पी.डी. पंत, प्रो. जे.के. जोशी और प्रो. एच.पी. शुक्ला ने विश्वविद्यालय के विकास की यात्रा को साझा करते हुए कहा कि यूओयू ने अपनी पहचान राज्य से बाहर तक स्थापित की है।
कुलसचिव डॉ. खेमराज भट्ट ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के तीन पूर्व छात्र डा. दीप चन्द्रा, डा. विपिन चन्द्रा और डा. सुधीर पंत को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा. कुमार मंगलम ने किया।
कार्यक्रम में वित्त नियंत्रक एस.पी. सिंह, सभी विभागों के निदेशक, शिक्षक एवं कर्मचारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
कुमाऊँनी और गढ़वाली भाषा पर गूंजे स्वर, संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने रखे विचार
विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन जनरल सीडीएस रावत बहुउद्देशीय सभागार में “कुमाऊँनी भाषा” पर तकनीकी सत्र आयोजित किया गया।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने विश्वविद्यालय की सामाजिक भूमिका और भाषाई संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
डा. चंद्रकांत तिवारी ने कहा कि “हिमालय की अनुभूति से जुड़ा कुमाऊँ अपने लोक, भाषा और संस्कृति से गहराई से संबंधित है।” उन्होंने पलायन को भाषा-संरक्षण की सबसे बड़ी चुनौती बताया।
डा. हयात सिंह रावत, संपादक पहरू पत्रिका, ने कहा कि कुमाऊँनी भाषा हिंदी से भी अधिक प्राचीन और समृद्ध है, लेकिन उसे अपेक्षित महत्व नहीं मिला। उन्होंने इसे प्राथमिक शिक्षा में शामिल करने और रोजगार उन्मुख बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रो. ममता पंत ने कहा कि कुमाऊँनी भाषा भारत की भाषाई विविधता का गौरव है। वहीं मुख्य अतिथि प्रो. प्रीति आर्या ने कहा कि “भाषा हमारी पहचान है, इसका व्यवहारिक प्रयोग ही इसके अस्तित्व की रक्षा कर सकता है।”
इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि बल्ली सिंह चीमा को सम्मानित किया गया।
अध्यक्षता कर रही प्रो. उमा भट्ट ने कहा कि “भाषाओं की विलुप्तता का कारण शहरीकरण और वैश्वीकरण है।” उन्होंने राज्य की सभी स्थानीय भाषाओं—कुमाऊँनी, गढ़वाली, थारू, जौनसारी आदि—के संरक्षण पर बल दिया।
संगोष्ठी के दूसरे तकनीकी सत्र में गढ़वाली भाषा पर केंद्रित चर्चा हुई, जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण, आधुनिकता के दौर में भाषा का स्वरूप, और उत्तराखण्ड की भाषाई समृद्धि पर शोध-पत्र प्रस्तुत किए गए।
मुख्य अतिथि गणेश खुगशाल ‘गणि’ ने कहा कि “साहित्य के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं की जीवंतता बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।”
अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. देव सिंह पोखरिया ने कहा कि उत्तराखण्ड का भाषाई वैभव उसकी सांस्कृतिक पहचान की जड़ है, और भाषा संरक्षण में समाज, अकादमिक जगत और शासन की साझा भूमिका आवश्यक है।
सत्र का संचालन हिंदी विभाग के शोधार्थी उमेश ध्यानी ने किया।








