शीर्षक : भागदौड़ की दुनिया

 

भाग दौड़ की दुनिया में इंसान कहीं खो गए,
गुमराह होकर अपने रास्ते से दूर गए।
स्वतंत्रता की बातें  करते हैं इतनी,
लेकिन चालाकी से अपने ही हितों को साधने में लगे हैं।
हरेक दिल में एक आग सी जलती है,
जो  आगे बढ़ने की प्रेरणा तो देती है।
लेकिन इंसा के पैर जमीन पर नहीं हैं,
वे तो हवा में उड़ते हैं और अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।
वे अपनेपन की बातें करते हैं,
लेकिन दिखावे की दुनिया में कहीं खो गए हैं।
उनके चेहरे पर एक मुस्कान है,
लेकिन हरेक दिलों में एक दर्द छिपा है।
सत्ता की भूख ने जिन्हें अंधा कर दिया,
घमंड में चूर होकर वे अपने आप को भूल गए हैं।
इंसा को फिर  से खुद को तलाशने की जरूरत है,
और इस जीवन को नए तरीके से तराशने की जरूरत है।

लेखक : कुसुम बिष्ट

 


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गणेश मेवाड़ी

संपादक - मानस दर्पण

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