“औंधे मुंह गिरे आयोग के आदेश: सीता देवी केस बना मिसाल, यशपाल आर्य बोले – न्याय की नई उम्मीद जगी”

देहरादून, 22 जुलाई। राज्य के पंचायत चुनावों में निर्वाचन आयोग और उसके अधिकारियों के फैसलों पर माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल और उच्चतम न्यायालय की ओर से लगाई गई लगाम ने न्याय की ओर एक नई उम्मीद जगा दी है। नेता प्रतिपक्ष श्री यशपाल आर्य ने इन ऐतिहासिक फैसलों का स्वागत करते हुए कहा कि निर्वाचन अधिकारियों के मनमाने और पक्षपातपूर्ण फैसले अब कानून की कसौटी पर टिक नहीं पाएंगे।

उन्होंने कहा कि टिहरी जिले की सकलाना क्षेत्र की भूत्शी पंचायत सीट से प्रत्याशी सीता देवी (मनवाल) के नामांकन को पहले चुनाव अधिकारी द्वारा खारिज कर दिया गया था। इस पर माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल और फिर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने अपने निर्णयों में स्पष्ट रूप से चुनाव अधिकारी के फैसले को गलत ठहराते हुए सीता देवी के नामांकन को वैध करार दिया।

यशपाल आर्य ने जोर देकर कहा कि, “यह फैसला चुनावी याचिकाओं के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में न्यायालयों के लिए मार्गदर्शक बनेगा।” उन्होंने कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली में अब यह मान्यता बनती जा रही है कि अगर निर्वाचन आयोग की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण, अवैध या मनमानी हो, तो उस पर निर्वाचन याचिका के पहले भी रिट याचिका के माध्यम से न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।

नेता प्रतिपक्ष ने 2000 में आए सुप्रीम कोर्ट के ‘निर्वाचन आयोग बनाम अशोक कुमार’ मामले के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए बताया कि उत्तराखण्ड के पंचायत चुनावों में रिटर्निंग ऑफिसरों द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से निर्णय लिए गए, जो आयोग द्वारा तय दिशा-निर्देशों की खुली अवहेलना थे।

आर्य ने कहा कि अधिकांशतः एक बार चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाने के बाद न्यायालय चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करते, जिसका आधार सुप्रीम कोर्ट का 1952 का पुन्नू स्वामी बनाम निर्वाचन आयोग का फैसला रहा है। मगर, जब चुनाव प्रक्रिया ही दुर्भावना और अनुचित तरीकों से चलाई जा रही हो, तब न्यायालय का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है।

“उत्तराखण्ड के पंचायत चुनावों में इस बार दर्जनों मामलों में ऐसे गलत निर्णय लिए गए हैं,” आर्य ने कहा, “लेकिन सीता देवी मामले में अदालतों द्वारा दिया गया न्याय, लोकतंत्र की गरिमा की पुनः स्थापना है।”

यशपाल आर्य ने यह भी कहा कि पुन्नू स्वामी मामले के नाम पर गलत लाभ उठाने वाले अधिकारियों और प्रत्याशियों के खिलाफ न्यायालयों में कड़ी चुनौती दी जानी चाहिए, जिससे लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों का विश्वास मजबूत हो।


Advertisements

गिरीश भट्ट

मुख्य संवाददाता - मानस दर्पण