राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाने की समय की मांग ताकि महिलाओं के उत्पीड़न से पुरूषो को निजात मिल सकें

करन सिंह
लखनऊ। नवयुग पत्रकार के विकास एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 ईश्वर सहाय शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मांग पत्र भेजकर राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाने की मांग की हैं ताकि महिलाओं के उत्पीड़न से पुरूषो को निजात मिल सकें।
गुरूजी ने बताया कि प्रधानमंत्री की पहली बार सरकार बनी तो उम्मीद जागी थी कि अब राष्ट्रीय पुरूष आयोग बन जायेंगा। लेकिन आपका प्रशासनिक तंत्र यह कहकर फाइले बंद कर देता रहा कि आपका सुझाव बहुत अच्छा है। महिला आयोग की तर्ज पर समानता के अधिकारों के तहत राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाकर गजट नोटिफिकेशन कराने की मांग की है। पुरुष पत्नियों द्वारा घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं, उन्हें न्याय दिलाने के लिये एक राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाना समय की मांग है। समाचार पत्रों व इंटरनेट मीडिया पर आये दिन ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि पत्नियों के हाथों पिटने वाले पतियों के मामलों में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। पत्नियों द्वारा गाली-गलौच एवं मामूली बातों पर दहेज उत्पीड़न व घरेलू हिंसा के कानूनों का सहारा लेकर न केवल पतियों, बल्कि उनके परिवार वालों को भी कठघरे में खड़ा करना आम बात हो गयी है। आये दिन नवविवाहिता स्त्रियां अपने पति को सताती रहती है, जबकि उनका कोई अपराध नहीं होता है। देखा जाये तो आज कितने परिवार ऐसे हैं, जो मामूली बातों व झूठे मुकदमों के कारण तबाह हो रहे हैं। पुरुषों के लिये काम करने वाले संगठनों के पास ऐसे बेशुमार मामले आते हैं, लेकिन देश का कानून स्त्रियों को दोषी मानता ही नहीं, यह समाज के लिये कंलक है। क्या किसी भी समाज में ऐसा संभव है? कि 100 प्रतिशत पुरूष ही दोषी हों और 100 प्रतिशत स्त्रियां निर्दोष हो, यदि न्याय वाकई सबकी सुनता है और सबकी रक्षा करता है तो आखिर उसे पुरुषों की क्यों नहीं सुननी चाहिये? क्या वह इस देश के नागरिक अथवा मतदाता नहीं हैं? परिवार को चलाने में यदि मां की भूमिका होती है तो पुरुष भी रात-दिन मेहनत करते हैं। वह भी परिवार की जरूरतों के लिये कोई कोर-कसर शेष नहीं रखते। मैं वर्ष 2020 से राष्ट्रीय पुरूष आयोग बनाने की मांग करता आ रहा हूं। जबकि लोकतंत्र का यही नियम है कि प्रत्येक को समान रूप से न्याय मिलना चाहिये।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ;एनसीआरबीद्ध के अनुसार देश में वर्ष 2021 में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की। आत्महत्या करने वालों में विवाहित पुरुषों की संख्या 81,063 थी। जबकि महिलाओं की संख्या 28,680 थी। 33.2 प्रतिशत पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण व 4.8 प्रतिशत ने वैवाहिक कारणों से आत्महत्या की। पुरुषों की आत्महत्या व घरेलू हिंसा से निपटने के लिये मानवाधिकार आयोग को भी निर्देश दिया जाना चाहिये। मुकदमा होने पर महिलाओं की सुनी जाती हैं और पुरूषों की नहीं। बिना किसी जांच-पड़ताल के पुरुषों को दोषी मान लिया जाता है। कानून की यह प्रक्रिया गलत है, जहां दूसरे पक्ष को अपनी बात कहने और अपने को सही साबित करने का अवसर प्रदान नहीं किया जाता है? आज की बहू व युवा स्त्रियां 70-80 वर्ष के बुजुर्ग घरेलू हिंसा व दहेज प्रताड़ना के मामले में फंसा देती हैं और उनका जीवन नरक बन जाता है और वर्षों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रहते हैं। कुछ की नौकरी चली जाती है और समाज में बदनामी अलग से होती है। इसी एकपक्षीयता से निपटने के लिये राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाना समय की मांग है।


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गणेश मेवाड़ी

संपादक - मानस दर्पण

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