खुनीगाड़ नहर बना भ्रष्टाचार का गढ़ – 9.54 लाख के बाद अब 4 लाख और! किसानों को अब भी नहीं मिला पानी
तीन साल से सूखे की मार झेल रहे किसान ठेकेदार और विभाग की मिलीभगत से बर्बाद हुई सरकारी योजनाएं पीएम पोर्टल पर शिकायतों के बावजूद नहीं हुई कोई ठोस कार्रवाई "नाची नहीं राधा, पी गया 9 मन तेल" – किसानों के दुख का प्रतीक बनी नहर

पुरोला 17 जून पुरोला ब्लॉक की ग्राम पंचायत कुकरेड़ा के खेड़ा क्षेत्र में सिंचाई के नाम पर चल रही सरकारी योजनाएं अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिख रही हैं। तीन वर्षों से सूखे की मार झेल रहे किसानों को अब तक पानी नहीं मिल पाया, लेकिन विभाग और ठेकेदार मिलकर बार-बार योजनाओं में लाखों खर्च कर रहे हैं — नतीजा शून्य।
स्पेशल कंपोनेंट प्लान (SCP) के तहत 9.54 लाख रुपये की लागत से वर्ष 2024 में नहर में 900 मीटर प्लास्टिक पाइप और दो चेम्बर लगाए गए। फिर भी किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंचा। अब उसी अधूरी नहर के नाम पर जिला योजना के तहत फिर से 4 लाख रुपये स्वीकृत कर कार्य शुरू कर दिया गया है।
शिकायत के बाद भी नहीं मिली राहत:
किसान मोहन दास और मोहन लाल द्वारा मुख्यमंत्री पोर्टल पर कई बार शिकायत की गई, लेकिन केवल कागजी कार्यवाही ही हुई। 24 अगस्त 2024 को अधिशासी अभियंता भरत राम ने एक जवाबी पत्र में सहायक अभियंता के हवाले से जानकारी दी कि कार्य पूर्ण हो चुका है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके उलट है।
मोहन दास बताते हैं कि 25 नवंबर 2024 को जब अधिकारियों ने मौके का निरीक्षण किया तो कहा गया कि “अगर चुप बैठे रहोगे तो हम जिला योजना से 7 लाख और पास करवा लेंगे।” ऐसे में किसान पूछ रहे हैं – “क्या एक ही काम के लिए बार-बार पैसे खर्च करने की योजना बनाना ही सरकार की उपलब्धि है?”
विभाग की चुप्पी:
जब पत्रकारों ने विभाग के सहायक अभियंता एसके शर्मा से बात करनी चाही तो उनके मोबाइल पर लगातार एक गाना बजता रहा – “मुझे तुम याद करना…”, लेकिन फोन नहीं उठाया गया। अधिशासी अभियंता भरत राम ने जरूर इतना कहा कि “जल्द ही काम फिर से शुरू किया जाएगा और किसानों को पानी मिलेगा।”
किसानों की हालत बदहाल:
स्थानीय किसानों का कहना है कि आलू की क्यारियाँ सूख चुकी हैं, खेत बंजर हो गए हैं और जीवन यापन करना कठिन हो गया है। वे मांग कर रहे हैं कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कर ठेकेदार और अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
निष्कर्ष:
लघु सिंचाई विभाग की यह योजना किसानों की खुशहाली नहीं, बल्कि सरकारी धन की बर्बादी और भ्रष्टाचार की मिसाल बनती जा रही है। अब देखना है कि प्रशासन कब नींद से जागता है और क्या किसानों को कभी मिलेगा उनकी मेहनत का पानी?
(यह खबर स्वतंत्र पत्रकारिता के तहत तैयार की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस मुद्दे को संबंधित प्रशासन तक पहुंचाने में भूमिका निभाएं।)

