आज हाशिए पर हैं इंजीनियरः दुबे
इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के चेयरमैन बोले, औपचारिकता रह गया इंजीनियर्स डे

देहरादून 15 सितंबर : हर साल देशभर में 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है, लेकिन इंजीनियरों की स्थिति को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) उत्तराखंड केंद्र के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे का कहना है कि आज जिस तरह नीति निर्धारण और शीर्ष प्रबंधन में आईएएस अधिकारियों का वर्चस्व है. इंजीनियरों को हाशिए पर धकेल दिया गया है. इससे इंजीनियर्स डे महज औपचारिकता तक सीमित रह गया है.
किये जा रहे नजरंदाज
मीडिया को दिए बयान में शैलेंद्र दुबे
ने कहा कि राष्ट्र और समाज निर्माण में इंजीनियरों की भूमिका अहम है, लेकिन उनकी तकनीकी विशेषज्ञता को नजरअंदाज किया जा रहा है. इंजीनियरों को केवल कार्यकारी मान लिया जाता है, न कि नीति निर्माता. यही कारण है कि शीर्ष पदों पर गैर-तकनीकी लोगों का वर्चस्व बढ़ा है और इंजीनियरों की भूमिका सीमित हो गई है. शैलेंद्र दुबे ने सुझाव दिए कि तकनीकी मंत्रालयों और विभागों में सचिव, प्रमुख सचिव जैसे पदों पर इंजीनियरों की नियुक्ति अनिवार्य हो. इंजीनियरों को प्रशासनिक और नीति निर्माण संबंधी प्रशिक्षण दिया जाए, इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में प्रबंधन,
नीति और नेतृत्व कौशल शामिल हों.
फॉर्मेलिटी से बाहर आना होगा
इंजीनियर्स डे को औपचारिकता से आगे बढ़ाकर इंजीनियरों की उपलब्धियों का व्यापक प्रसार हो. इसके साथ ही उन्होंने जर्मनी, जापान की तर्ज पर भारत में भी टेक्नोक्रेट फेलोशिप जैसी पहल शुरू करने की पैरवी की. दुबे ने कहा कि यदि भारत को तकनीकी दृष्टि से सशक्त राष्ट्र बनाना है तो इंजीनियरों को नीति निर्धारण से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक समान भागीदारी देनी होगी. तभी इंजीनियर्स डे केवल औपचारिकता न रहकर वास्तविक सम्मान का दिवस बन पाएगा. विकसित देशों में इंजीनियरों को नीति निर्माण और नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती है. जर्मनी, जापान और अमेरिका सरीखे देशों में इंजीनियरिंग नवाचार और तकनीकी नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन भारत में राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी के चलते यह दृष्टिकोण अभी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया है.

