दतिया के हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर में माई पीतांबरा का अलौकिक यज्ञ धूमधाम के साथ संपन्न बारह घंटे के विराट यज्ञ में लिया देश के अनेक राज्यों के सैकड़ों भक्तों ने भाग

दतिया के हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर में माई पीतांबरा का अलौकिक यज्ञ धूमधाम के साथ संपन्न बारह घंटे के विराट यज्ञ में लिया देश के अनेक राज्यों के सैकड़ों भक्तों ने भाग महाभारत काल के इतिहास की गाथा समेटे है, वनखण्डेश्वर मंदिर ब्रहमाण्ड़ की सर्वोपरि शक्ति विराजमान है यहांं परमेश्वरी माई पीताम्बरा के दर्शन को देश व दुनियां से आते है भक्तजन यहां नही ली जाती है, झूठी सौगंध.

बनखण्डेश्वर मंदिर है,अटूट आस्था का केन्द्र
शिशुपाल के मित्र दंतवक्र से जुड़ा है दतिया का इतिहास
राष्ट्रगुरु पूज्यपाद अनन्तश्री की यादें महकती है,यहां के कण कण में
सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरुजी ने दतिया की भूमि में की 36 दिन की निराहार साधना दिया भक्तों को आशीर्वाद

दतिया(मध्य प्रदेश)/ माँ पीतांबरा के पावन धाम दतिया के हनुमानगढ़ी मंदिर में माँ बगलामुखी के 12 घंटे के विराट यज्ञ में देश की अनेक राज्यों के सैकड़ों भक्तों ने भाग लेकर बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ यज्ञ में माँ को आहुतियां प्रदान की।

राष्ट्र की सुख समृद्धि एवं मंगल कामना को लेकर दतिया के हनुमानगढ़ी मंदिर में पिछले 36 दिनों से माँ बगलामुखी के प्रसिद्ध साधक साधक विजेन्द्र पाण्डे गुरुजी यहाँ साधनारत थे 36 दिवसीय साधना के पूर्ण होने के पश्चात आज बारह घण्टे का विराट हवन यज्ञ आयोजित इस यज्ञ में देश के अनेक राज्यों के भक्तों ने पहुंचकर आहुतियाँ प्रदान की
इस अवसर पर हनुमान गढ़ी के उपासक लाल बाबा बगलाधार टिहरी गढ़वाल के रामकृष्ण महाराज वृदांवन से साध्वी रानी नाथ जी महिला आयोग की सदस्य उत्तर प्रदेश से सुनीता सैनी पूर्व दर्जा राज्य मन्त्री उत्तराखण्ड सरकार ललित पंत प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सूर्यनाथ द्विवेदी प्रसिद्ध पर्यावरण प्रेमी हेमन्त बोरा वरिष्ठ समाजसेवी हेमवती नन्दन दुर्गापाल भाजपा मण्डल महामन्त्री बिन्दुखत्ता रमेश कुनियाल पत्रकार अजय सैनी दिल्ली के प्रसिद्ध व्यवसायी धीरज पंत अमित गुप्ता विरेश सक्सेना हरीश बिष्ट मथुरा से माई के परम आस्थावान भक्त रामस्वरूप शर्मा राकेश राजपूत बागेश्वर से हरीश बिष्ट बलरामपुर से अजीत प्रधान श्रावस्ती से भाजपा महामन्त्री दिवाकर शुक्ला जिला पंचायत सदस्य श्रावस्ती अशोक यादव राजनारायण शुक्ला पवन शुक्ला बहराइच से डा० जीत सिंह संतोष मिश्रा संतोष गुप्ता प्रखर श्रीवास्तव आनन्द प्रधान कृष्ण चन्द्र तिवारी आशीष जायसवाल सर्वेश गंगवार बरेली से जगदीश शाक्य बबली बाजपेयी विक्रम गुप्ता राजस्थान रूप सिंह सरपंच होना पण्डित दतिया से विकास उपाध्याय बबलू जी राधेश्याम शाहू अनुभव चतुर्वेदी झांसी से पंकज जी ब्रिजेश शर्मा दिवाकर सोनी दिल्ली से मिश्रा जी विनोद तिवारी राकेश सैनी विनोद मिश्रा दिल्ली भरत जी बीना मिश्रा बिटू मिश्रा सहित अनेकों मौजूद रहे

🌹उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में स्थित दतिया शहर का महत्व सम्पूर्ण भारत वर्ष की आध्यात्म की विरासत में अद्भूत व अतुलनीय है।ब्रहमास्त्र शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माई पीताम्बरा का दरबार स्थित होनें के कारण दतिया को पावन धाम का दर्जा प्राप्त है। महाभारत काल की स्मृतियों को अपनें आंचल में समेटे दतिया धाम में माई पीताम्बरा के दर्शनों हेतु देश व विदेश से भक्तजनों की आवाजाही निरंतर लगी रहती है माई का यह दरबार आनन्द का धाम है। और आनन्द का कोई विलोम नहीं है।इसलिए इस देवी के दरबार की महिमां का वर्णन शब्दों से परे है।

🌹बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है। अपनी उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कंचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं।श्री राम पर भी इनकी असीम कृपा थी इसलिए इन्हें रामाप्रपूजिता भी कहा जाता हैभगवान श्री कृष्ण की आराध्या होनें के कारण ये केशवस्तुता भी कही जाती है

🌹एक पौराणिक प्रसंगाानुसार जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया तो सती अत्यधिक क्रोधित हो उठी। सती के रौद्र रूप को देख कर भगवान शिव अत्यधिक विचलित हो गये और इधर-उधर भागने लगे। तब सहसा दशों दिशाओं में सती का विराट स्वरूप प्रकट हो गया। भगवान शिव ने जब देवी से पूछा कि वे कौन हैं, तो विराट स्वरूपा देवी सती ने दश नामों के साथ अपना परिचय दिया जो दश महाविद्याओं ने रूप में जगत प्रसिद्ध हुई।

🌹एक अन्य पौराणिक कथानुसार ‘कृत’ युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया।

भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह संसार की रक्षा की।इसलिए इन्हें विष्णु चिन्ताहरणी भी कहा जाता है।ब्रह्मास्त्र रूपा श्री विद्या के अखण्ड तेज से युक्त मंगल चतुर्दशी की मकार कुल नक्षत्रों वाली रात्रि को ‘वीर रात्रि’ कहा गया है, क्योंकि इसी रात्रि के दूसरे पहर में भगवती श्री बगलामुखी देवी का आभिर्भाव बताया जाता है माँ त्रिपुर सुन्दरी के परम सुन्दर स्वरुप माई पीताम्बरी की साधना हेतु भी भक्त यहां समय निकालकर आते रहते है।आज के भौतिक युग में सर्वत्र द्वन्द एवं संघर्ष का वातावरण व्याप्त है। जीवन में उन्नति करने के लिए स्वस्थ स्पर्धा के स्थान पर ईर्ष्या, रागद्वेष और घृणा का भाव अधिक प्रभावी है।

परिणामस्वरूप हर तरफ अशान्ति, अभाव, लड़ाई-झगड़े आपराधिक गतिविधियों तथा पापाचार का बोलबाला है। जनसामान्य में असुरक्षा का भाव घर गया है। अधिकांश लोग परेशान व विचलित हैं। ऐसी परिस्थिति में जो कोई भी सुख व शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे अन्ततः माई पीताम्बरा के शरण में जाना ही श्रेयष्कर मानते हैं।
क्योकिं माँ भगवती बगलामुखी ममतामयी हैं, करुणामयी हैं तथा दयामयी हैं। ऐसी विषम स्थितियों में भगवती बगलामुखी देवी की शरण ही सबसे सरल व प्रभावी मानी गयी है। शास्त्रों में कहा गया है-बगलामुखी देवी की शरणागति भक्तों को सहारा व साहस प्रदान करती है तथा सभी प्रकार के संशयों, दुविधाओं एवं खतरों से निर्भय कर देती है।

यह एक सर्वविदित मान्यता है कि मनुष्य को तभी शान्ति की अनुभूति होती है, जब वह अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की यह परम् अभिलाषा होती है कि उसे सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा तथा शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त हो। शास्त्रकारों ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, विजय श्री का वरण करने के लिए तथा अपने प्रभाव व पराक्रम में बृद्धि करने के लिए भगवती बगलामुखी देवी की साधना को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है।
🌹अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है।

उपनिषदों में जिसे ब्रह्म कहा गया है, उसे भी इस शक्ति से अभिन्न माना गया है। यानी ब्रह्म भी शक्ति के साथ संयुक्त होकर ही सृष्टि के समस्त कार्यों को कर पाने में समर्थ हो पाता है। इसीलिए तो शक्ति तत्व की उपासना, वंदना व साधना को मनुष्य मात्र के लिए ही नहीं अपितु देवताओं के लिए भी परम् आवश्यक बताया गया है। इसी शक्ति तत्व में नव दुर्गा तथा सभी दश महाविद्याएं समाहित हैं, जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सृजन करती हैं। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। यथा-
काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।
कृष्ण यजुर्वेद अन्तर्गत ‘काठक संहिता’ में मॉ भगवती बगलामुखी का बड़ा ही मोहक तथा सुन्दर वृतान्त मिलता है।

सभी दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, मोहक रूप धारण करने वाली ‘विष्णु पत्नी’ वैष्णवी महाशक्ति त्रिलोक की ईश्वरी कही जाती है। इसी को स्तम्भनकारिणी शक्ति, नाम व रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार व पृथ्वी रूपा कहा गया है। भगवती बगलामुखी इसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री दवी हैं
बगलामुखी देवी को जन सामान्य ‘बगुला पक्षी’ के मुखाकृति वाली देवी समझ बैठते हैं, जबकि यह बगुला की मुखाकृति वाली देवी नहीं हैं। पुरातन ग्रन्थों में इस देवी को ‘बल्गामुखी’ अर्थात अखण्ड व असीम तेजयुक्त मुखमण्डल वाली देवी कहा गया है।

इस बात पर संशय की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि भगवती बगलामुखी देवी की श्रद्धा व विश्वास के साथ आराधना करने वाले साधक अपने विरोधियों तथा प्रतिद्वदियों पर सदैव विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं और दुखियों के दुःख दूर करने में भी सक्षम हो जाते हैं। आमतौर पर असाध्य रोगों व संकटों से छुटकारा पाने के लिए, दूसरों को अपने अनुकूल बनाने के लिए, हर तरह की विघ्न बाधाएं शान्त करने के लिए तथा नवग्रहों की शान्ति के लिए मॉ भगवती बगलामुखी का विधिपूर्वक किया जाने वाला अनुष्ठान अत्यधिक प्रभावशाली एवं तत्काल फलदायी माना गया है भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य अन्तर्गत दतिया नगर में स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ, भगवती बगलामुखी देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। इसकी नींव वर्ष 1920 में तत्कालीन महान सन्त पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनन्त श्री स्वामी जी महाराज द्वारा लोक कल्याण के पावन संकल्प के साथ रखी गयी थी।

यहीं से बगलामुखी देवी की साधना एवं पूजा-अर्चना पीताम्बरा स्वरूप में आरम्भ हुई और देखते ही देखते इस शक्तिपीठ की कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैल गयी और वर्तमान में तो मॉ का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ दुनिया भर के समर्पित साधकों के लिए एक महातीर्थ के रूप में लोक प्रसिद्ध है दतिया स्थित भगवती पीताम्बरी माई के इस शक्तिपीठ का पुरातन स्वरूप बड़ा ही आकर्षक, मनोहारी एवं परम शान्तिदायक था। नैसर्गिक वातावरण के बीच स्थित यह शक्तिपीठ तब चारों ओर से सघन वनों से घिरा हुआ था। आश्रम से लगे वन क्षेत्र में दिन के समय में भी अनेक वन्य जीव यत्र-तत्र निर्भय होकर विचरते रहते थे। ऐसे भी प्रशंग मिलते हैं जब हिंसक वन्य जीव आश्रम परिसर में आ कर शान्त भाव से घंटों बैठे रहते थे और महाराज के सानिध्य में मानो भक्ति का लाभ उठाते थे।

हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित आश्रम में नाना प्रकार के पक्षियों का मधुर कलरव यहां के दिव्य एवं मनोहारी वातावरण को और भी मोहक बना देता था। मन्द पवन के बीच रंग-विरंगे फूलों पर मंडराते भंवरों की गुंजन समूचे वातावरण में संगीत का अनुभव कराती प्रतीत होती थी। आश्रम में दूर-दूर से आकर सन्त-महात्मा एवं साधकगण नित्य ही शोभा पाते थे और पूज्यपाद अनन्त श्री महाराज जी के स्नेह,सानिध्य एवं मार्गदर्शन में मॉ भगवती पीताम्बरी देवी की कठोर व पवित्र साधना में रत रह कर अनेकानेक सिद्धियां अर्जित करते थे। सभी तरह की सिद्धियों में लोक कल्याण की पुनीत भावना सर्वोपरि रहती थी।आज भी शान्ति का यह स्वरुप यहां कायम है। महाभारत कालीन दंतवक्र के नाम के आधार पर दतिया का नाम जगत में प्रसिद्व हुआ दंतवक्र राजा शिशुपाल के परम मित्रों में एक थे।

पीठ में स्थित वनखंडेश्वर मंदिर अश्वथामा की तपोस्थली के रुप में प्रसिद्व है कहा जाता है माई पीताम्बरी के दरवार में स्थित इस देव दरबार में झूठी कसम खाना महाअनर्थ का सूचक माना जाता है।दतिया देश के बुंदेलखंड प्रांत का एक शहर है। ग्वालियर से कुछ ही किमी० की दूरी पर यू०पी० की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश का लोकप्रिय तीर्थस्थलों में सबसे महत्वपूर्ण है।झांसी से यहां की दूरी पन्द्रह किलोमीटर है।इस मन्दिर के आसपास तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृखंला मौजूद है।

यहां का किला भी अपनी पुरातन ऐतिहासिकता का प्रमाण देता है।जैन धर्म के अनुनायियों का यह तपोक्षेत्रं माना गया है।उत्तराखण्ड़ के प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर कटारमल व गुणादित्य की भांति ही दतिया क्षेंत्र का उनाव में स्थित मन्दिर प्रसिद्व है।आध्यात्म की इस पावन धरती पर कदम कदम पर धर्म व आस्था बिखरी हुई है हनुमान मंदिर,शनि मंदिर मन्दिर प्रागंण में स्थित माई धूमावती का मन्दिर ,गोविन्द मंदिर और बिहारीजी मंदिर यहां के पावन मंदिर हैं।

यूं तो देश भर में माई पीताम्बरी के अनेकों मंदिर है।जिनमें नलखेड़ा व वैघनाथ के मंदिर भी खासे प्रसिद्व मन्दिर है।उत्तराखण्ड़ के तो पिथाैरागढ़ जिले के अन्तर्गत त्रिपुरा देवी बेरीनाग क्षेत्र में स्थित त्रिपुर सुन्दरी माई का मन्दिर,पिथौरागढ़ का उल्कादेवी मन्दिर,बागेश्वर का कुकड़ी माई मन्दिर, इनका स्वरूप माना जाता है।

भीमताल के निकट महरा गाँव में नन्तीन महाराज द्वारा स्थापित माई पीताम्बरी का मन्दिर पुरातन महत्व की दृष्टि से बेहद रमणीक है केदार खण्ड़ में भी हिमालय के प्रसिद्ध बगंला क्षेत्र का वर्णन मिलता है।शिव पार्वती संवाद में भगवान शिव माता पार्वती को इस क्षेत्रं का महत्व बतलाते हुए कहते है।यह पृथ्वी का परमपूज्यनीय पावन व सिद्धियों को प्राप्त करनें वाला क्षेत्र है।सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु जी की अगुवाई में दतिया के हनुमानगढ़ी मंदिर में गुरुवार को आयोजित 12 घंटे के विराट हवन यज्ञ में देश के अनेक भागों के भक्तों ने भाग लेकर मां पीतांबरा की कृपा को प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य किया।

लेखक रमाकांत पंत, वरिष्ठ पत्रकार

गणेश मेवाड़ी

संपादक - मानस दर्पण
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