विधायक की सैलरी 2.90 लाख, और बेरोजगार युवाओं को मनरेगा में सिर्फ 252 रुपए – क्या यही है विकास का संतुलन?

देहरादून। ‘साहब तेरे गांव में हम परदेशी’—यह कहावत आज उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं पर सटीक बैठती है। एक तरफ प्रदेश के मंत्री और विधायक हर माह लाखों रुपये की तनख्वाह और भत्ते उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वही प्रदेश का युवा, दिनभर मेहनत करने के बाद महज 252 रुपये की मनरेगा मजदूरी पाने को मजबूर है।
राज्य के एक विधायक को हर महीने 2 लाख 90 हजार रुपये की सैलरी मिलती है। वहीं, मंत्री को प्रति विभाग के हिसाब से 80 हजार रुपये तक का वेतन दिया जाता है। अगर किसी मंत्री के पास 5 विभाग हैं, तो उन्हें लगभग 4 लाख रुपये प्रति माह सैलरी और भत्तों के रूप में मिलते हैं। इसके अलावा अगर कोई मंत्री सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करता, तो वाहन भत्ते के रूप में 40 हजार रुपये अलग से मिलते हैं।
दूसरी ओर
वही राज्य, जहां एक मंत्री की एक दिन की आय हजारों में है, वहां लाखों युवा मनरेगा के अंतर्गत 252 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी पर काम करने को विवश हैं। बेरोजगारी की मार झेल रहे इन युवाओं के लिए यह मजदूरी न तो महंगाई के लिहाज से पर्याप्त है, न ही उनके भविष्य को संवारने के लिए।
पंजाब से मिलती है प्रेरणा
पंजाब सरकार ने हाल ही में एक बड़ा कदम उठाते हुए विधायकों की पेंशन में कटौती की घोषणा की है। अब कोई भी विधायक चाहे जितनी बार भी निर्वाचित हुआ हो, उसे सिर्फ एक बार की ही पेंशन मिलेगी। इससे सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और जनता की नजर में जवाबदेही भी बढ़ेगी।
क्या उत्तराखंड सरकार लेगी सबक?
अब सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड सरकार भी पंजाब की राह पर चलेगी? क्या वह बेरोजगार युवाओं के लिए मनरेगा मजदूरी में इजाफा करेगी या फिर मंत्री-विधायकों की सैलरी और भत्तों में कटौती कर राज्य के संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करेगी?

