स्मैक का जाल: कैसे फंसते हैं युवा, और कैसे बचा सकते हैं उन्हें अभिभावक?”

हल्द्वानी। शहर में नशे का दानव तेजी से अपने पैर पसार रहा है। स्मैक की लत अब सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और मानसिक बीमारी का रूप ले चुकी है। सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि इसके शिकार बन रहे हैं हमारे युवा, जो देश का भविष्य हैं।

लेकिन अब इस जंग में अभिभावक भी मोर्चा संभाल चुके हैं। हल्द्वानी के प्रमुख नशा मुक्ति केंद्रों और अस्पतालों में लगातार ऐसे अभिभावकों की संख्या बढ़ रही है जो अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए जागरूक हो चुके हैं।

नशा मुक्ति केंद्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में स्मैक से जुड़े मामलों में तेज़ी आई है। केंद्र व्यवस्थापको के अनुसार.

> “हर दिन कई माता-पिता इलाज और सलाह के लिए पहुंच रहे हैं। अगर समय रहते हस्तक्षेप न किया जाए, तो यह लत युवाओं को पूरी तरह बर्बाद कर सकती है।”

कैसे लगती है स्मैक की लत?

1. जिज्ञासा से शुरूआत: अक्सर दोस्ती या समूह में शामिल होने के दबाव में युवा ‘मज़े’ के लिए स्मैक ट्राई करते हैं।

2. एक बार से बार-बार: स्मैक में अत्यधिक नशा होता है, जिससे शरीर और दिमाग बार-बार इसकी मांग करने लगते हैं।

3. मानसिक और शारीरिक निर्भरता: कुछ ही हफ्तों में व्यक्ति इसका आदी हो जाता है और बिना स्मैक के सामान्य महसूस नहीं कर पाता।

स्मैक की लत से बचाव कैसे करें?

अभिभावक क्या करें?

खुलकर संवाद करें: बच्चों से रोज़ बातचीत करें, डर नहीं बल्कि विश्वास का माहौल बनाएं।

बदलावों पर नज़र रखें: व्यवहार, पढ़ाई, दोस्तों और पैसे की आदतों में अचानक बदलाव को हल्के में न लें।

डिजिटल मॉनिटरिंग: मोबाइल, सोशल मीडिया और ऑनलाइन चैटिंग पर ध्यान दें।

समय पर पेशेवर मदद लें: शक होने पर तुरंत किसी मनोचिकित्सक या नशा मुक्ति केंद्र से संपर्क करें।

सामाजिक उपाय:

स्कूलों में नियमित नशा विरोधी कार्यशालाएं.

युवा क्लबों में जागरूकता कार्यक्रम.

पुलिस और सामाजिक संगठनों की भागीदारी.

खेलो को बढ़ावा.

निष्कर्ष:

स्मैक की लत एक गंभीर खतरा है, लेकिन इससे लड़ा जा सकता है — अगर परिवार जागरूक और सक्रिय हो। अभिभावकों की भागीदारी इस जहर को समाज से खत्म करने की सबसे मजबूत कड़ी साबित हो सकती है।

याद रखें:
“नशा मुक्त युवा ही देश का भविष्य है।”


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गणेश मेवाड़ी

संपादक - मानस दर्पण