ढाबे की थाली में सरकार का ‘कमिशन’: गजरौला में खुलेआम लूट!

"60 रुपये सरकार को, 40 में खिलाएं क्या?" – युनिक टूरिस्ट ढाबा संचालक का खुलासा

गजरौला (उत्तर प्रदेश), पर्यटकों और यात्रियों की जेब पर खुलेआम डाका डाला जा रहा है – और यह सब हो रहा है सरकार की ‘मूक सहमति’ से। युनिक टूरिस्ट ढाबे पर जो कुछ सामने आया है, वह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि सिस्टम की सड़ांध को भी उजागर करता है।

ढाबा संचालक का कहना है कि वह खुद थाली में मुनाफा नहीं कमा रहा – क्योंकि हर ₹100 की थाली में ₹60 तक “कमिशन” सरकार और उत्तराखंड रोडवेज को जाता है।

थाली में क्या है और कितने की है?

4 रोटी, थोड़े से छोले, एक कटोरी दाल,1 मुट्ठी से कम चावल, मूल्य: ₹100

लेकिन जब ग्राहक ने बिल मांगा, तो होटल संचालक ने साफ़ मना कर दिया। उसका कहना था कि,
“इसमें से ₹60 तो कमिशन चला जाता है सरकार और रोडवेज को। बचे ₹40 में क्या बचता है?”

सामान्य चीज़ों की असामान्य कीमतें

₹5 वाली आइसक्रीम = ₹25, एक कप साधारण चाय = ₹20, एक ब्रेड पकौड़ा = ₹25, पानी की बोतल = ₹30

यात्रियों को मजबूरन ये कीमतें चुकानी पड़ रही हैं क्योंकि बस को जबरन रोका जाता है इसी ढाबे पर।

बस ना रोको तो लगेगा जुर्माना!

एक रोडवेज परिचालक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया
“अगर हम बस को इस ढाबे पर नहीं रोकते, तो डिपो ₹2000 का जुर्माना ठोक देता है।”

यानी यात्रियों के आराम के नाम पर ढाबा-माफिया और रोडवेज अधिकारियों की मिलीभगत से जमकर उगाही की जा रही है।

समाजसेवी मगत सिंह रमोला का बयान

समाजसेवी मगत सिंह रमोला ने इस पूरे प्रकरण को लेकर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने मांग की है कि सरकार इस पूरे ढाबा-रोडवेज गठजोड़ की उच्च स्तरीय जांच करवाए और यात्रियों के हक में तत्काल कार्रवाई करे।

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ताकि यह लूटखसोट केन्द्र सरकार और संबंधित विभागों तक पहुँचे और इस “कमिशन तंत्र” को रोका जा सके। यात्रियों की जेब से पैसा नहीं, इंसाफ़ निकलना चाहिए।


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गणेश मेवाड़ी

संपादक - मानस दर्पण

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