उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय का स्वर्णिम सफर: स्वतंत्रता एवं प्रगति पर त्रिदिवसीय उत्सव का भव्य शुभारंभ

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना के 20 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय परिसर में 13, 14 और 15 अगस्त को “स्वर्णिम सफलता के 20 वर्ष: उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय – स्वतंत्रता एवं प्रगति पर त्रिदिवसीय उत्सव” का आयोजन किया जा रहा है। इस विशेष आयोजन के पहले दिन विविध कार्यक्रमों के माध्यम से विश्वविद्यालय की अकादमिक यात्रा, शोध उपलब्धियों और भविष्य की दिशा पर विमर्श हुआ।

प्रथम सत्र: ज्ञान, शोध और प्रतिबद्धता पर केंद्रित विमर्श

कार्यक्रम के प्रथम सत्र की शुरुआत स्वागत वक्तव्य से हुई, जिसमें प्रो. गिरिजा पाण्डे ने विश्वविद्यालय की शोध यात्रा और वैश्विक स्तर पर विद्वानों की भागीदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने देश-विदेश के प्रमुख विद्वानों के ज्ञान से निरंतर लाभ प्राप्त किया है। उन्होंने मॉन्ट्रियल यूनिवर्सिटी के प्रो. जॉन लैमियट, प्रो. गैरी एल्डर और शिवानंद कनावी जैसे नामचीन व्यक्तित्वों के योगदान को याद किया।

मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. जमाल सिद्दीकी ने शोध के मूल तत्वों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समस्या को समझे बिना किया गया शोध अधूरा रहता है। उन्होंने डिजिटल माध्यमों पर पूर्णतया निर्भर न रहते हुए पुस्तकों और शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही शोधार्थियों को मेरठ विश्वविद्यालय की ई-लाइब्रेरी तक पहुँच की प्रक्रिया भी बताई।

मुख्य अतिथि व अध्यक्षीय विचार

कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में कहा कि अपनी जड़ों को जानना एक शोधार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने चाणक्य के विचारों का उल्लेख करते हुए बताया कि किसी भी विकसित राष्ट्र के लिए छह आधारभूत स्तंभ – नेतृत्व, कूटनीति, सेना, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और ढांचा – अनिवार्य हैं, और भारत इन सभी में सक्षम है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने अपने संबोधन में शोध की निष्पक्षता, समर्पण और आत्मविश्लेषण को अत्यावश्यक बताया। उन्होंने कहा कि शोधार्थी को खाली घड़े की तरह होना चाहिए, जिसमें नया ज्ञान समा सके। साथ ही, उन्होंने दूसरों की आलोचना से पहले आत्ममंथन की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि शोध एक मौलिक प्रयास होना चाहिए, न कि मात्र संकलन।

सत्र का समापन डॉ. मनमोहन जोशी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

द्वितीय सत्र: शोधपत्र प्रस्तुतिकरण

दूसरे सत्र में विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। इस सत्र में बीबीसी रेडियो (हिंदी) के पूर्व संपादक प्रो. राजेश जोशी और एम.बी.पी.जी. कॉलेज के प्राणि विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. चंद्र सिंह नेगी विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. गिरिजा पाण्डे द्वारा प्रस्तुत किया गया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. खेमराज भट्ट, परीक्षा नियंत्रक डॉ. सोमेश कुमार, वित्त नियंत्रक एस.पी. सिंह, विभिन्न विद्याशाखाओं के निदेशकगण, शैक्षणिक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी तथा शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

तीन दिवसीय यह आयोजन न केवल विश्वविद्यालय की बीते दो दशकों की उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि आने वाले वर्षों में शिक्षा और शोध के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों को छूने के संकल्प का भी प्रतीक है।


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गिरीश भट्ट

मुख्य संवाददाता - मानस दर्पण

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