चाय की चुस्की, सहायक अभियंता की पोल और चौराहे की चर्चा!
चर्चा चौराहे की ( हास्य व्यंग्य और चर्चाएं )

चौराहे पर चाय की दुकानों की हंसी-ठहाकों के बीच कभी गंभीर चर्चा भी होती है। आज उसी चौराहे पर चाय की चुस्की लेते हुए, लोग एक नई बात पर चर्चा कर रहे थे: सहायक अभियंता और उनके जल जीवन मिशन में घोटाले!
“तू जानता है इस सहायक अभियंता को?” एक व्यक्ति ने चाय के प्याले को आराम से हाथ में पकड़ते हुए पूछा। “हां, हां, वही सहायक अभियंता! जो जल संस्थान में जैसे किसी के लिए कुम्भ मेला लगा हो, और वो अकेला संतिरा हो!” दूसरे ने ताव से जवाब दिया।
“अबे, ये कुम्भ मेला वाला उदाहरण क्यों दिया?” पहले ने चिढ़ते हुए कहा, “असल में ये वही इंसान है, जिसने खड़कपुर में जल टैंक बनवाया और बाकी सारे लोग उसे देखकर अब टंकी में घुसने से भी डरते हैं!”
अब चाय की दुकान पर बैठे बाकी लोग भी ध्यान से सुनने लगे। एक तीसरा व्यक्ति बोला, “अरे भाई, ये व्यक्ति तो जल जीवन मिशन के ‘जीवन का जल’ खुद ही लूटने में व्यस्त है। उसके पास इतने रिश्ते-नाते हैं कि ट्रांसफर की बात करना तो जैसे ताबीज का मंत्र पढ़ने जैसा है!”
“सुनो, सुनो! ये बताओ, ऐसा क्या कनेक्शन है इसके साथ?” चौथे ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा। “क्या कनेक्शन? कहते हैं कि इसके ऊपर एक बड़े सफेदपोश नेता का हाथ है! वही नेता है, जो इसे बचा कर रखे हुए है।” पहले वाले ने बड़ी हल्की सी मुस्कान के साथ बताया।
“अच्छा? सफेदपोश नेता? तो फिर कार्रवाई किसकी होगी?” एक आदमी ज़रा चिढ़ते हुए बोला, “ये सहायक अभियंता तो जैसे किसी सम्राट की तरह जमे हुए हैं! जल जीवन मिशन की कोई गड़बड़ी दिखे तो हर कोई चुप रहता है। ये खड़कपुर वाला टैंक! अब उसे कोई नहीं कह सकता, क्यों कि जड़ें ही इतनी गहरी हैं!”
“क्या कर सकते हैं? सत्ता के आगे तो कोई हिम्मत नहीं कर सकता। सहायक अभियंता को जांच के घेरे में लाओ, तो पूरी राजनीति ही जल में बह जाएगी!” एक और आदमी ठहाका लगाते हुए बोला।
“अब तुम सोचो, अगर सहायक अभियंता के ऊपर सख्त कार्रवाई हो गई तो यह जल संस्थान के सारे ‘जीवन जल’ को खोने का खतरा होगा। कोई और काम भी नहीं बच पाएगा!” चाय वाले ने मजाक में कहा, “तो भाई, जल के घोटाले के खिलाफ कार्रवाई करना वैसे ही है जैसे चाय में शक्कर डालने की बजाय नमक डालना!”
“सच में भाई! ये अगर फंसा तो… दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा!” पहले वाले ने गहरी सोच के साथ कहा।
आखिर क्या हो?
यह चाय की दुकान और चौराहा केवल एक जगह नहीं थी जहां यह चर्चा हो रही थी। हर गली, हर नुक्कड़ पर अब लोग यह सवाल उठा रहे थे, “आखिर किसका हाथ है इन साहेब के कंधे पर?” जवाब तो किसी के पास नहीं था, लेकिन एक बात तो तय थी: चाय की चुस्की और जल संस्थान का घोटाला अब चौराहे पर चर्चा का हिस्सा बन चुका था।
अगली बार जब चाय पीते हुए ये चर्चा होगी, तो शायद फिर से वही सवाल सामने आएगा – “किसकी खातिर इस अभियंता की कुंडली अब तक सलामत है?”
तो, क्या समझते हो, सहायक अभियंता की कुंडली सचमुच जल में डूबने वाली है, या फिर ये चर्चा बस चाय के प्याले तक ही सिमित रह जाएगी?

